21.2.09

चड्डी, पेंटी, गुलाबी रंग

आज सुबह-सुबह भटकते हुए कुछ इधर-उधर पर निगाह मार रही थी (लड़कियों को इधर-उधर निगाह नहीं मारना चाहिए अन्यथा छिछोरी कहा जा सकता है) देखा कि अभी तक गुलाबी चड्डी अपनी चमक के साथ ब्लाग पर मौजूद है। कुछ को समस्या यह कि तेरी चड्डी मेरी चड्डी से गुलाबी कैसे? क्यों उसे पैंटी नहीं कहा, क्यों उसे चड्डी कहा अब ये चर्चा का विषय है।
चलिए यदि उन मोहतरमा ने चड्डी के स्थान पर पैंटी कहा होता तो क्या उसकी गर्माहट चली जाती। वैसे ये शब्द सुन कर ही कहाँ-कहाँ गर्माहट आयी होगी बताने की जरूरत नहीं। यह तो तय है कि अभी भी आधुनिकता का पाठ पढ़ाने के बाद भी पुरुष नारी को अपने अधिकार में ही रखना चाहता है। वेलेंटाइन डे के नाम पर कुछ लोग हो सकता है कि असंस्कृति को बढ़ावा दे रहे हों पर क्या सभी लोग ऐसा कर रहे हैं?
भटकते नहीं हैं, बात चड्डी और पैंटी की.......जो लोग इन शब्दों के अच्छे बुरे पर अपने ब्लाग को रंगने में लगे हैं वे भी मन ही मन में स्वाद बना रहे होते हैं। क्यों हम दोतरफा व्यवहार करते देखे जाते हैं? लड़कियों के प्रति बड़ा ही आदर दिखाने के साथ-साथ उसे अपने अंक में लेना चाहते हैं। वैसे विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण प्रत्येक जीवधारी में होता है। अन्तर इस बात का है कि इसे किस तरह से ले रहा है। चड्डी और गुलाबी रंग को इसी प्रकार से लिया जाना चाहिए। ये प्रतीक है उस मानसिकता के खिलाफ जिसे साथ-साथ जाते भाई-बहिन भी प्रेमी-प्रमिका नजर आते हैं। यह विद्रोह का प्रतीक है उस मानसिकता के विरुद्ध जो किसी लड़के के साथ लड़की को देख लेने पर कहता है कि ‘माल कहाँ से उड़ाया है?’
अब लड़कियों को माल, वस्तु और देह से ऊपर भी समझने की कोशिश करनी होगी वरना जो चड्डियाँ आज महिलायें भेज रहीं हैं वो कल को पुरुष समेटते नजर आयेंगे।

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