18.2.09

संवेदना की चाह


हर सांस संवेदना की चाह रखती है,
हर धड़कन दिल में आसमान रखती है।
कौन जाने कहाँ रुके उड़ान?
कौन जाने कहाँ शाम हो?
है मकसद बिना रुके आगे बढ़ने का,
अपने आप को कुछ साबित करने का,
क्या मिला है मौका या
क्या मिलेगा मौका?
कौन बतायेगा मुझे?
कौन समझायेगा मुझे?
क्यों समझते हो मुझे कि
बनूँगी बोझ,
समझो कि मैं भी हूँ
एक अस्तित्वधारी,
एक जीवधारी।
नहीं देख पाते हो तुम मुझे अभी,
क्योंकि नहीं है चाहत तुम्हें
मुझे देखने की,
देखा है तुमने मुझे यंत्र के सहारे,
रुको, देखो मुझे अपनी आंखों के सहारे,
तब बताना कि क्या मैं बोझ हूँ?
तब बताना कि क्या मैं तुम्हारी नहीं?
तब बताना.............
आह! क्या और एक मौका नहीं है?
आह! क्या बस एक आह ही है....
क्या बस एक आह ही है?????

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