20.3.09

......और मर गई वो बच्ची

अपनी पिछली पोस्ट में हुल्लड़ के दौरान जिस लड़की (बच्ची) की चर्चा की थी वह अब इस दुनिया में नहीं रही। अपने ऊपर हुए पौरिशिक लैंगिक जुल्म का इलाज कराते-कराते सभी तरह के कष्टों से मुक्त हो गई।

जीत हुई उन नर पिशाचों की जो खुलेआम तो खून नहीं पीते पर अपने अंगों (गुप्त) के द्वारा बच्चियों का खून पीते हैं। कोई पूछेगा उनसे की होली में की गई इस शारीरिक क्रिया से उन्हें क्या सुख मिला?


कोई नहीं पूछेगा.......लड़की को ही छिनाल, बेहया, बेशर्म कहा जायेगा।


फूलों का एक गुच्छा उस बच्ची के नाम


(गूगल से साभार लिया है)

13.3.09

होली पर हुल्लड़ या बलात्कार


होली का दिन.......

हुल्लड़ करने वालों की भीड़.....

दस-ग्यारह वर्ष की लड़की (इसे बच्ची ही कहेंगे शायद?)......

रंगों की फुहार......

बच्ची का घेरना......

और फ़िर कुछ देर बाद..............

खून से लथपथ सनी बच्ची........

अब अपने बड़े हो जाने (या करवा दिए जाने ) का दर्द सहना .........

इसे क्या कहेंगे.......बलात्कार.....सेक्स.....हुल्लड़......या होली की उमंग?

ऐसे गुजर गई इस बार हमारे शहर में होली........

9.3.09

होली की आड़ में

रंगो का त्योहार होली कल है। लोगों का शुभकामनायें देना और कहीं न कहीं रंग लगाने का क्रम शुरू हो भी चुका है। मजे उन लोगों के हैं जो आम दिनों में कुछ नहीं कर पाते और अब होली के बहाने भाभी का नाम लेकर रंगों में सराबोर होकर उनके शरीर को किसी न किसी रूप में छूने की कोशिश करेंगे।

क्या अब होली का यही अर्थ रह गया है?

बहुत अच्छी तरह से याद है कि बचपन में हम सब भाई बहिन एक साथ टोली बना कर लोगों के घरों में आया जाया करते थे पर अब????? अब ऐसा कुछ भी नहीं बचा। अपने आपमें सिमट कर घर के लोगों के साथ ही होली के आयोजन की औपचारिकता का निर्वाह कर लेते हैं और बस।

बाहर जाने पर तमाम तरह के कमेंट, शराब पिये लड़कियों को लालचियों की तरह घूरते लोग, आँखों ही आँखों में सारे शरीर से खेलते लोग, बिना बदन छुए ही बलात्कार करते लोग................. क्यों खलें बाहर निकल कर ऐसी होली?

घर पर ही रहे और आपको कहते हैं ‘‘होली मुबारक’’

7.3.09

क्यों सिर्फ एक शरीर है एक लड़की?

कुदरत ने औरत बनाया, आदमी बनाया। आदम हव्वा की कहानी यहाँ नहीं सुनाई जायेगी क्योंकि ये कहानी आज भी घर-घर में सुनने को मिलती है। कोई कुछ भी कहे आज यौनांकाक्षा की भावना इतनी चरम पर पहुँच गई है कि सम्बन्धों के नाम पर बस स्त्री-पुरुष ही दिखायी देते हैं।

अपनी लड़की को अकेले भेजने के नाम पर पसीने छूट जाते हैं।

किसी रिश्तेदार के घर पर कई दिनों तक अकेले छोड़ने की बातें अब स्वप्न की बातें हैं।

रिश्तों के नाम पर अब भाई बहिन के बीच के, बाप बेटी के बीच के शारीरिक सम्बन्ध तक सामने आ गये हैं।

(पढ़ा लिखा समाज इस बात को नहीं मानेगा)

कहाँ सुरक्षित है अब लड़की?

किसके साथ सहज है अब लड़की?

क्यों सिर्फ एक शरीर है एक लड़की?

महिला दिवस के नाम पर भाषणों के दौर चलेंगे पर एक सवाल क्या कभी ट्रेन के शौचालयों में नारियों के लिए लिखे सुन्दर, सभ्रान्त, रिश्ते निभाते शब्दों की ओर गौर किया है?

रात को किसी भी जरूरी काम से बाहर दिखती लड़की को देख कर अपनी आँखों में तैर आये लाल डोरों को देखा है?

चलिए महिला दिवस के नाम पर किसी सभा में जाकर ढेरों महिलाओं के शारीरिक सौन्दर्य को तो निहार ही आइये।

2.3.09

नारी की परिभाषा क्या शरीर से है?

‘‘मेरा वजन भी कुछ बढ़ गया था, मैं देखने में भी बहुत अजीब सी लगने लगी थी, मेरे पति अब मुझमें रुचि नहीं दिखा रहे थे, तब मुझे लगा कि अब कुछ करना होगा। तब मैंने ली ...................... ’’ इस तरह के वाक्य अधिकांशतः आपको किसी न किसी चैनल पर किसी विशेष दवा या किसी विशेष यंत्र के विज्ञापन में देखने को मिल जायेंगे। अब इस पंक्ति के बाद ‘‘अब मेरे पति मुझे छोड़ कर जाते ही नहीं, मैं फिर पहले जैसी ही जवान हो गयी हूँ ................ ’’ इस तरह की कुछ पंक्तियाँ सुनने को मिलतीं हैं।
क्या आपको इस तरह के विज्ञापनों को देख-सुन कर कुछ खास तरह की बात याद आती है? शायद हाँ, शायद न। इस तरह के विज्ञापनों में नारी की छवि को एक शारीरिक सौन्दर्य वाली छवि से ग्रस्त दिखाया जाता है। जिसके शारीरिक सौन्दर्य को तो बढ़ाने के तरीके बताये जाते हैं पर इस तरह के विज्ञापनों में यह नहीं बताया जाता है कि किस प्रकार एक नारी अपने विश्वास में बढ़ोत्तरी करे।
नारी को लेकर रचे जाते विज्ञापनों में नारी की छवि को लेकर कई बार सवाल उठे हैं, कई बार इसको कहस का मुद्दा बनाया गया है किन्तु किसी प्रकार का हल दिखता नहीं है।
सवाल ये है कि क्या अपनी कमर को कम करके, अपने शारीरिक सौन्दर्य को कम करके ही नारी अपने आपको समाज में स्थापित कर सकती है?