कुदरत ने औरत बनाया, आदमी बनाया। आदम हव्वा की कहानी यहाँ नहीं सुनाई जायेगी क्योंकि ये कहानी आज भी घर-घर में सुनने को मिलती है। कोई कुछ भी कहे आज यौनांकाक्षा की भावना इतनी चरम पर पहुँच गई है कि सम्बन्धों के नाम पर बस स्त्री-पुरुष ही दिखायी देते हैं।
अपनी लड़की को अकेले भेजने के नाम पर पसीने छूट जाते हैं।
किसी रिश्तेदार के घर पर कई दिनों तक अकेले छोड़ने की बातें अब स्वप्न की बातें हैं।
रिश्तों के नाम पर अब भाई बहिन के बीच के, बाप बेटी के बीच के शारीरिक सम्बन्ध तक सामने आ गये हैं।
(पढ़ा लिखा समाज इस बात को नहीं मानेगा)
कहाँ सुरक्षित है अब लड़की?
किसके साथ सहज है अब लड़की?
क्यों सिर्फ एक शरीर है एक लड़की?
महिला दिवस के नाम पर भाषणों के दौर चलेंगे पर एक सवाल क्या कभी ट्रेन के शौचालयों में नारियों के लिए लिखे सुन्दर, सभ्रान्त, रिश्ते निभाते शब्दों की ओर गौर किया है?
रात को किसी भी जरूरी काम से बाहर दिखती लड़की को देख कर अपनी आँखों में तैर आये लाल डोरों को देखा है?
चलिए महिला दिवस के नाम पर किसी सभा में जाकर ढेरों महिलाओं के शारीरिक सौन्दर्य को तो निहार ही आइये।
बात तो सच है पर आदमी की जात को बदलेगी कैसे ??
ReplyDeletebahut badhiya likha hai... aawaj uthaate rahiye.
ReplyDeleteबात सच है
ReplyDelete