20.5.09

क्या सम्भावनाओं के सहारे ही जिन्दगी गुजार दी जायेगी?

सम्भावनाओं के साथ आदमी किस कदर जीता रहता है यह बात सोचती रहती थी पर इस बार फील्ड में जाकर देखा तो एहसास हुआ। यह एहसास भी बड़ी अजीब सी चीज है...............
चलिए अभी तो सम्भावनाओं की तलाश में, जब पहली बार पत्रकारिता को चुना तो लोगों ने कहा कि इस क्षेत्र में लड़कियों के लिए कोई सम्भावना नहीं है। तब मुझे समझ नहीं आया कि सम्भावना किस बात की है और किस बात की नहीं है? आज तो लड़की के साथ एक बड़ी अजीब समस्या है कुछ कर जाये तो लांछन कि बिछ गई होगी बिस्तर पर...........है उसके पास कुछ खास हम लड़कों से। और अगर कुछ न कर पाये तो वही पुराना राग.......कितना समझाया था कि ये लड़कियों के बस का रोग नहीं...............।
सम्भावनाओं ने इस क्षेत्र में मेरे कदम मजबूती से रखने को प्रेरित किया और जब चुनाव कवरेज के लिए इधर-उधर जाना पड़ा तो पता लगा कि इस देश में बहुतायत लोग सम्भावनाओं पर ही जीते हैं।
क्या सम्भावनाओं के सहारे ही जिन्दगी गुजार दी जायेगी?

2 comments:

  1. main manta hoon ki ladkiyon ke saath kaafi samsyaen hain par ladkiyan unse ooper uthi hain aur kiya hai.. aap aisa na sonchen aur jo kar rahi hain karti rahen.. wasie main bhi kabhi patrkarita kerna chhata tha,abhi bhi kagta hai ki shayad wahi sahi hota.. par... theek hai aise bhi theek hi hain :) Likhti rahiye aur humare blog par bhi padhariye kabhi.. shayad aapke aane se logon ka aana badh jaye..wasie aajkal in sabs e ooper uth gaya hoon

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  2. मैं-मेरा औ तू-तेरा,
    होवे हम और हमारा ।
    आनंद स्वस्तिमय सुंदर,
    समरस लघु जीवन सारा ॥

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