5.4.09

मैं दे सकती हूँ सब कुछ

आओ मैं तुम्हें
अपने प्यार से सराबोर कर दूँ,
आओ मैं तुम्हारे
व्यथित मन को शांत कर दूँ,
आओ मैं तुम्हारी
धड़कनों को धड़कने का बहाना दूँ,
आओ मैं तुम्हें
जिन्दगी जीने का ठिकाना दूँ,
आओ मैं तुम्हें
अपने तन की तपिश दूँ,
मैं तुम्हें दे सकती हूँ
वह सब जो तुम चाहो,
मैं दे सकती हूँ वह सुख
जो तुम तलाशो,
आओ मेरी बाँहों में
और खो जाओ मेरी दुनिया में,
न शरमाओ,
पास आओ,
तुमने तो खोजा है हमेशा
नारी में उसका तन,
नहीं खोजा उसका मन,
तुम्हारी तलाश के लिए नहीं,
तुम्हारी प्यास के लिए नहीं,
मैं सब कुछ दे सकती हूँ,
क्योंकि
मैं नारी हूँ,
मैं माँ हूँ,
मैं दात्री हूँ,
पर एक पल को रुको
और सोचो,
तुम क्या हो?

3 comments:

  1. पर एक पल को रुको
    और सोचो तुम क्या हो ?

    मन व्यतिथ हो गया ..
    सीधे दिल पर चोट की है..

    keep it up.........

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  2. bolne ke liye words nahee hai.. lagta hai kahin chot khayee hai aapne. Bas itna bolonga, khush rahiye, jaise bhi rahiye..

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